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गुमनाम क्रांतिवीर प्रफुल्ल चाकी।

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 भारत की धरती महान क्रान्ति वीरों का उद्गम है, जिस प्रकार हिमालय भारत की तृष्णा को मिटाने वाली जीवनदायी जलधाराओं का मूल है। ठीक वैसे ही भारती की कोख से समय- समय पर राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप विभूतियों का उद्भव होता है। इसी क्रम में एक गुमनाम क्रान्तिवीर -  प्रफुल्ल चाकी  जन्म -10 दिसंबर 1888, स्थान-  तत्कालीन बंगाल वर्तमान-(  बोगरा) बांग्लादेश प्रभाविता- स्वामी विवेकानंद  के व्यक्तित्व  व उनकें साहित्य से। क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी (१० दिसंबर १८८८ - १ मई १९०८) का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रफुल्ल का जन्म उत्तरी बंगाल के बोगरा जिला (अब बांग्लादेश में स्थित) के बिहारी गाँव में हुआ था। जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय क्रांतिकारी संगठन से हुआ। प्रफुल्ल ने स्वामी विवेकानंद के साहित्य का अध्ययन किया और वे उससे बहुत प्रभावित हुए। अनेक क्रांतिकारियों के विचारों का भी प्रफुल्ल ने अध्ययन किया इससे उनके

राष्ट्रवाद के संरक्षक - " पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी।

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  राष्ट्रवाद के संरक्षक-" पंडित दीनदयाल उपाध्याय।" जीवन परिचय-  जन्म- 25 सितम्बर 1916  जन्म स्थान- नगला चन्द्रभान,(मथुरा) उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत पिता- भगवती प्रसाद उपाध्याय माता- रामप्यारी देवी मृत्यु- 11 फरवरी 1968 मृत्यु के कारण-  स्वतन्त्र भारत में मुगलसराय के आसपास रेल में हत्या। राजनीतिक दल-  भारतीय जनसंघ। बाल्यकाल और शिक्षा -  उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे। रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे।  जब दीनानाथ दो वर्ष के हुये तब उनकें छोटे भाई का जन्म हुआ।जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उपाध्याय जी के नाना चुन्नीलाल शुक्ल धानक्या (जयपुर, राज०) में स्टेशन मास्टर थे। नाना का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ बड़े हुए। नाना का गाँव आगरा जिले में फतेहपुर सीकरी के पास

व्यक्ति विशेष- बालभारती पात्रिका के संपादक वी० वी० सुब्रमण्यम अय्यर

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  व्यक्ति विशेष- बालभारती पात्रिका के सम्पादक  "वी० वी० सुब्रमण्यम अय्यर" जन्म दिवस। ' राष्ट्र प्रथम ' की भावना प्रत्येक राष्ट्र के नागरिकों में होना आवश्यक है। राष्ट्र को सर्वोच्च ध्येय मानकर ही महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, राणा कुम्भल, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, महारानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती ने अपनें प्राणों को भी राष्ट्र हेतु अर्पित कर दिया।राष्ट्र सर्वोपरि है ऐसी भावना के क्षीण होने के कारण ही यह आर्यवृत्त, भारत  पराधीनता , दासता की जंजीरों में जकड़ा रहा। इसी कड़ी में दक्षिण भारत के एक क्रांतिकारी, पत्रकार, संपादक  वी० वी० सुब्रमण्यम जी। वराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्य अय्यर एक क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे। उनका जन्म 2 अप्रैल 1881 को मद्रास प्रदेश के तिरुचिरापल्ली जिले में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने जिले में वकालत करने लगे। अय्यर अधिक सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहले रंगून गए और फिर बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गये। वहां उनकी मुलाकात गांधीजी से हो गयी। सुब्रमण्य क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। उनका मानना था कि शस्त्र

व्यक्ति विशेष- "गणेश शंकर विद्यार्थी" बलिदान दिवस ।

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  राष्ट्ररवादी पत्रिका "प्रताप"  व्यक्ति विशेष -गणेश शंकर विद्यार्थी। विशेष- गणेश शंकर विद्यार्थी बलिदान दिवस।  पंडित गणेशशंकर 'विद्यार्थी' का जन्म आश्विन शुक्ल 14, रविवार सं. 1947 (1890 ई.) को अपनी ननिहाल, इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में श्रीवास्तव (कायस्थ) परिवार में हुआ। इनके पिता मुंशी जयनारायण कायस्थ हथगाँव, जिला फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। माता का नाम गोमतीदेवी था। पिता ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे।  शिक्षा-   विद्यारंभ उर्दू से हुआ और 1905 ई. में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की। 1907 ई. में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला कालेज में भर्ती हुए। उसी समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और  कार्मक्षेत्र 1.भारत में अंग्रेज़ी राज के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल कायस्थ, इलाहाबाद के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे।  2. 1908 ई. में कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. मासिक की नौकरी की। परंतु अंग्रेज अफसर

भारतवर्ष में राष्ट्रवाद की प्राचीन अवधारणा।

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  भारतवर्ष में राष्ट्रवाद की  प्राचीन अवधारणा  साधारण रुप से प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रवाद का भारत में उदय पश्चिमी देशों की विचारधारा से उत्पन्न हुआ मानतें है।  कई पश्चिम के विद्वान/ इतिहासकार  इस बात को  यह मानने लगते हैं कि ब्रिटिश लोगों के कारण ही भारत में राष्ट्रवाद की भावना ने जन्म लिया; राष्ट्रीयता की चेतना ब्रिटिश शासन की देन है और उससे पहले भारतीय इस चेतना से अनभिज्ञ थे। पर यह सत्य नहीं है। वरन् भारतीय सभ्यता में राष्ट्र प्रथम की भावना सदियों से चली आ रही है। इसका वर्णन हमारी पौराणिक कथाओं में मिलता है। इन्ही तथ्यों को इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।  वस्तुतः भारत की राष्ट्रीय चेतना वैदिककाल  से अस्तित्व में  है। अथर्ववेद में वर्णित  पृथ्वी सूक्त में धरती माता का यशोगान किया गया हैं। जो इस प्रकार है    "माता भूमिः पुत्रोsहम पृथिव्याः" ।  पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं मातृभूमि के प्रति पग पग पर कृतज्ञता व्यक्त की गयी है।  विष्णुपुराण में तो राष्ट्र के प्रति का श्रद्धाभाव अपने चरमोत्कर्ष पर दिखाई देता है। इस में भारत का यशोगान 'पृथ्वी पर स्वर्

व्यक्ति विशेष-" मुत्तुस्वामी दीक्षित (महान संगीतज्ञ दक्षिण भारत )

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   व्यक्ति  विशेष - "मुत्तुस्वामी दीक्षित"(दक्षिण भारत के महान संगीतज्ञ) 1976 में भारत सरकार द्वारा जारी  किया गया डाक टिकट  मातेश्वरी माँ भारती के गर्भ से समय - समय पर भारतवर्ष में अनेकों महान विभूतियों का जन्म हुआ है। भारत की भूमि ऐसे महान परिचयों से भरी हुई है। ऐसे ही एक परिचय है- मुत्तुस्वामी दीक्षित।  मुत्तुस्वामी दीक्षित का जन्म 1775ई० में तिरुवारूर,तंजावुर, तमिलनाडु में हुआ था। जन्म- 24 मार्च 1775 जन्म स्थान-तिरुवारूर, तंजावुर, तमिलनाडु, भारत गायन शैली- कर्नाटक संगीत, शास्त्रीय संगीतकार। पिता - रामस्वामी दीक्षित। मुत्तुस्वामी  के बचपन से ही  उन्हें धर्म, साहित्य, अलंकार और मन्त्र ज्ञान की शिक्षा दी गयी तथा उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता से ली थी। मुत्तुस्वामी के किशोरावस्था में ही, उनके पिता ने उन्हें चिदंबरनथ योगी नामक एक भिक्षु के साथ तीर्थयात्रा पर संगीत और दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेज दिया था।  इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने उत्तर भारत के कई स्थानों का दौरा किया और धर्म और संगीत पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया जो उनकी कई रचनाओं में परिलक्षित हो

बलिदान दिवस-23 मार्च 1931

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  23 मार्च बलिदान दिवस यूँ तो भारतवर्ष की माटी ने सदैव अतुलनीय और दुष्कर कार्य करनें वालें वीर पुत्रों को जन्म दिया है। परन्तु आज हम जिन वीरों का चरित्र लेकर आयें है वे अपनें आप में समर्पण और भारत माता के चरणों में हंसते हुए बलिदान हो गयें। समर्पण ऐसा कि एक पूर्ण मानव जीवन भी ऐसी विभूतियों के सामने छोटा प्रतीत होता है।  यह घटना है 23 मार्च 1931 की, जब एक साथ  तीन वीर पुत्रों को भारत माता ने खो दिया।  ये वीर क्रातिकारी थे शहीद ऐ आज़म भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु।  भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु भारत के  महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ कार्य किया।  इन्ही के प्रयासों  से शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार कांपने लगी और उन्हें नौजवानों की शाक्ति से भय लगनें लगा।  लाहौर में अंग्रेज अधिकारी  बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की।   क्रान्तिवीर भगतसिंह  ने असेम्बली

विभूति परिचय- हनुमान प्रसाद पोद्दार

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    विभूति परिचय -  भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार   भारतवर्ष में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो गीता प्रेस को नही जानता।आज गीता प्रेस गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है। परिचय - जन्म- 6 अक्तूबर 1892 ईसवीं  स्थान- रतनगढ़,राजस्थान  पिता- भीमराज अग्रवाल माता- रिखीबाई  गुरु- निंबार्क सम्प्रदाय के संत ब्रजदास जी महाराज  राष्ट्र हेतु कार्य-  1.कलकत्ता में ये स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों अरविंद घोष, देशबंधु चितरंजन दास, पं झाबरमल शर्मा के संपर्क में आए और आज़ादी आंदोलन में कूद प